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ट्रांसफार्मर क्या है? इसके कार्य सिद्धांत एवं प्रकार- जानें हिंदी में।

 दोस्तोँ, हम सभी लोग बिजली का इस्तेमाल तो करते है। ऐसे में सभी लोग कही न कही ट्रांसफार्मर तो देखे ही होंगे चाहे वो छोटा हो या बडा। ऐसे में क्या आपको पता है कि ट्रांसफार्मर क्या होता है, यह कितने प्रकार का होता है। अगर आपको नहीं पता है तो चलिए मैं आपको विस्तार से बताता हूँ कि यह क्या होता है ? सबसे जरूरी बात जो सबको पता ही नहीं होती है, वो ये कि आखिर ट्रांसफार्मर काम कैसे करता है। तो आज के इस ब्लॉग में हम ट्रांसफार्मर से जुडी इन्ही सभी बातों को जानेंगे।

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ट्रांसफार्मर क्या है ?

ट्रांसफार्मर एक ऐसा विद्युत् यन्त्र है, जिसका उपयोग किसी प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) के आवृति(Frequency) को बिना बदले उसके विभवांतर (वोल्टेज) को कम या ज्यादा करने के लिए किया जाता है। इसे स्थिर यन्त्र या स्थैतिक डिवाइस भी कहा जाता है क्युकी इसमें किसी प्रकार का मूविंग पार्ट्स (घूमने वाला पार्ट्स) नहीं होता है। 

ट्रांसफार्मर केवल प्रत्यावर्ती धारा या विभवान्तर के साथ कार्य कर सकता है, यह एकदिश धारा (direct current) के साथ कार्य नहीं करता है। इसका मुख्य कारण- एकदिश करंट की आवृति का शुन्य होना है।

ट्रांसफार्मर की सबसे खाश बात जो इसे सभी मशीनो से अलग करती है, वो है इसका दक्षता(efficiency). इसकी दक्षता सभी विद्युत् मशीनो से ज्यादा होता हैं।

ट्रांसफार्मर की खोज :

पहला ट्रांसफार्मर की खोज सबसे पहले माइकल फैराडे के द्वारा 1831 ईस्वी में ब्रिटेन में की गयी थी। जिसके बाद विलियम स्टानले के द्वारा 1885 ईस्वी में प्रक्टिकली ट्रांसफार्मर का डिज़ाइन बनाया गया था, जो काफी हद तक आज के ट्रांसफॉर्मर के समान था।

ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत :

Working Principle: ट्रांसफार्मर माइकल फैराडे के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन प्रिंसिपल या mutual induction प्रिंसिपल के आधार पर कार्य करता है।

इस प्रिंसिपल के आधार पर जब हम कोर पर लिपटे एक वाइंडिंग में विद्युत् प्रवाहित करते हैं तो जो emf produce होता है, वह कोर के मध्यम से दूसरे कोर तक पंहुचता है। जिससे दूसरे वाइंडिंग में emf induce होने लगता है। इसे हम ट्रांसफार्मर कैसे कार्य करता है? के अंतर्गत और भी अच्छे से समझेंगे।

ट्रांसफार्मर की संरचना/ Construction of T/F :

ट्रांसफार्मर की संरचना में डिज़ाइन और साइज के आधार पर कई तरह के पार्ट्स इस्तमाल किये जाते है। इसलिए मैं आपको उन सभी मुख्य भागों के बारे में बताऊंगा जिसका साधारणतः सभी प्रकार के ट्रांसफॉर्मरों में इस्तेमाल किया जाता हैं। 

वैसे तो, ट्रांसफार्मर की संरचना में इसके मुख्य तीन भाग होते है :-
  1. प्राइमरी Coil
  2. सेकेंडरी Coil 
  3. मैग्नेटिक कोर
अन्य भाग :
  1. इंसुलेटेड शीट 
  2. रेडिएटर 
  3. कन्सेर्वटर टैंक 
  4. Oil लेवल इंडिकेटर आदि। 
Coil:-
कोर के चारो ओर तार को लपेटा(spiral) जाता है, जो अपने में से होकर गुजरने वाले Alternating Current की मदद से तार के चारों तरफ flux बनाता है। इसे में साधारणतः वाइंडिंग भी कहते है। ट्रांसफार्मर में दो coil लगे होते हैं। जिसमे एक coil इनपुट लेता है तो दूसरे की मदद से आउटपुट लिया जाता है। 
इन कोर को प्राइमरी coil और सेकेंडरी coil कहा जाता है। 

प्राइमरी coil :- ट्रांसफार्मर के जिस सिरे पर इनपुट दिया जाता है, उस साइड वाली वाइंडिंग को प्राइमरी coil  कहा जाता है।

सेकेंडरी Coil :- ट्रांसफार्मर के जिस सिरे से आउटपुट लिया जाता है, उस साइड वाली वाइंडिंग को सेकेंडरी coil कहा जाता है।

मैग्नेटिक कोर/ Core :- ट्रांसफार्मर में कोर मुख्यतः सिलिकॉन स्टील से बनाये जाए हैं। इसकी संरचना में सिलिकॉन स्टील की पतली पतली पत्तियों को आपस में वार्निश से जोड़कर बनाते जाते है। सिलिकॉन स्टील का उपोग कम आवृति वाले ट्रांसफॉर्मरों में ही किया जाता है। चुकी यह ट्रांसफार्मर में होने वाले iron loss और eddy current loss को काम कर देता है। 

वही, जिस ट्रांसफार्मर की आवृति 10 किलोहर्ट्ज से ज्यादा वह सिलिकॉन स्टील की जगह फेराइट की कोर का इस्तेमाल किया जाता है। कोर का मुख्य कार्य प्राइमरी वाइंडिंग पर जेनेरेट हुआ फ्लक्स को induce करना है।

इंसुलेटेड शीट :- ट्रांसफार्मर में इन्सुलटेड शीट का कार्य सभी पार्ट्स के बिच में इलेक्ट्रिक इंसुलेशन देना है। इसका उपयोग करने से ट्रांसफार्मर के coil के बिच सॉर्ट शर्किट नहीं होता है, और एलेट्रिक करंट कोर में प्रवाहित नहीं होता है।

रेडिएटर :- इसका मुख्य कार्य ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना होता है। चुकी बड़े ट्रांसफार्मर ज्यादे गरम रहते हैं, इसलिए इसका उपयोग बड़े ट्रांसफार्मरों में हो किया जाता है।

कन्सेर्वटोर टैंक :- यह बड़े आकर वाले ट्रांसफार्मर में होता है।  जैसा में आपने देखा होगा तीन फेज वाले ट्रांसफार्मर काफी बड़े होते हैं। ये ट्रांसफार्मर काफी गर्म हो जाते है, जिससे ट्रांसफार्मर के ख़राब होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसमें एक टैंक जैसी संरचना होती है, जिसमे ट्रांसफार्मर oil भरा जाता है, जो ट्रांसफार्मर को ठंडा रखता है। 
 
आयल लेवल इंडिकेटर :- जब ट्रांसफॉर्मर काफी दिन चलता है, तो समय के साथ उसके टैंक में भरी गई तेल घटती जाती है। तो ट्रांसफार्मर के टैंक में कितना तेल है इसका पता आयल लेवल इंडिकेटर से चलता है।

टांस्फॉर्मर के प्रकार :-

जैसा की हमने पहले ही बताया है की ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं। ट्रांसफार्मर को इसके संरचना, आकर, उपयोगिता आदि के आधार पर कई प्रकार में बांटा गया है। मैं आपको यहां पर कुछ महत्वपूर्ण ट्रांसफार्मर के प्रकार के बारे में बताएंगे। 

1. आउटपुट वोल्टेज के आधार पर : 

आउटपुट वोल्टेज के आधार पर दो प्रकार के ट्रांसफार्मर होते हैं। पहला स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर और दूसरा स्टेप अप ट्रांसफार्मर। चलिए मैं आपको आसान भाषा में बताता हूँ कि ये दोनों ट्रांसफार्मर का क्या कार्य हैं?

    A. स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर :-  जो ट्रांसफार्मर इनपुट वोल्टेज को घटाकर,आउटपुट पर कम वोल्टेज प्रदान करता हो, उसे हम स्टेप डाउन ट्रांसफॉमर कहते हैं। इस तरह के ट्रांसफार्मर का सबसे ज्यादा उपयोग घरेलु यंत्रों को चलने में किया जाता है, क्युकी अधिकतर घरो में उपयोग किये जाने वाले यन्त्र (डिवाइस) DC supply पर चलते हैं। और mains लाइन से घरों में 220 Volt का AC Supply आता है, जिसको स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर की मदद से उसे 12 Volt DC या जरूरत के हिसाब से बदल लिया जाता है।

स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग पर coil के turns की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग से ज्यादा होती है।  
No. of Turns on Primary winding> No. of Turns on Secondary winding

    B. स्टेप अप ट्रांसफार्मर :-  जो ट्रांसफार्मर कम इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर आउटपुट पर ज्यादा वोल्टेज प्रदान करता है , उसे स्टेप उप ट्रांसफार्मर कहा जाता है।

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग पर coil के turns की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग के अपेक्षा कम होती है। इसका उपयोग इन्वर्टर, स्टैब्लाइज़र आदि में किया जाता है।

    No. of Turns on Primary winding<No. of Turns on Secondary winding

2. फेजों की संख्या के आधार पर :-

ट्रांसफोरमर में जितने केबल में से मेंस धारा प्रवाहित की जाती है, वही उसकी फेजों की संख्या होती है। अमूमन, 1 फेज और 3 फेज के ट्रांसफार्मर ज्यादा देखे जाते हैं। चलिए जानते है फेजों के आधार पर ट्रांसफार्मर के प्रकार के बारे में -


    A. एक फेजी/ सिंगल फेज ट्रांसफार्मर :- इस प्रकार के ट्रांसफार्मर ज्यादातर घरेलु उपकरणों को चलाने में किया जाता है। इसमें एक प्राइमरी और एक सेकेंडरी वाइंडिंग होती है। इसकी मदद से हम उपकरणों के जरूरत के हिसाब से वोल्टेज अप या डाउन कर सकते हैं।  जिससे विद्युत् उपकरण सुरक्षित रहता है। 

    B. तीन फेजी/ थ्री फेज ट्रांसफार्मर :- इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में तीन प्राइमरी तथा तीन सेकेंडरी वाइंडिंग लगा होता है। इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल पावर डिस्ट्रीब्यूशन में किया जाता है।

    C. बहु फेजी / पॉलीफेज ट्रांसफार्मर :- इस तरह के ट्रांसफार्मर में तीन से ज्यादा इंडिंग्स लगे होते है। आमतोर पर इस तरह के ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है। 

इसी तरह और कई प्रकार से ट्रांसफार्मर को अनेक प्रकार में बांटा गया है। यहां पर मैंने उन्ही ट्रांसफार्मर के वर्गीकरण की चर्चा की है जो ज्यादे इस्तेमाल में लायी जाते हैं। 

ट्रांसफार्मर कैसे कार्य  करता है ?

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image credit : wikimedia.org


जैसा की हमने पहले जी बता दिया है कि ट्रांसफार्मर mutual इंडक्शन प्रिंसिपल के आधार पर कार्य करता है। लेकिन इससे आपको यह समझने में मुश्किल होगा कि आखिर ट्रांसफार्मर के अंदर क्या होता है जब यह कार्य करना शुरू करता है ? तो चलिए मैं आपको आसान शब्दों में बताता हूँ, ट्रांसफार्मर कैसे कार्य करता है के बारे  में-

सबसे पहले जब हम ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग में सिरे पर इनपुट करंट देते है तो यह पुरे वाइंडिंग में प्रवाहित होने लगता है।

चुकी करंट (विद्युत् धरा ) अपने चारो ओर मैग्नेटिक फ्लक्स बनाते है, ऐसे में पुरे प्राइमरी  वाइंडिंग में हैवी मैग्नेटिक फ्लक्स बनता है।  और ट्रांसफार्मर के कोर में induce होने लगता है।

जैसे ही फ्लक्स कोर में प्रवाहित होने लगता है। और सेकेंडरी वाइंडिंग तक पहुँचता है, जहां फ्लक्स सेकेंडरी वेंडिंग  induce हो जाती है।

जो step अप या डाउन वोल्टेज आउटपुट के रूप में सेकेंडरी वाइंडिंग के सिरे पर प्राप्त कर ली जाती है।

नोट :- इस बात को हमेशा याद रखें कि  ट्रांसफार्मर कभी भी विद्युत् शक्ति (इलेक्ट्रिक पावर ) को बढ़ा या घटा नहीं सकता। 

P = VI

अगर यह वोल्टेज को कम करेगा तो धारा का मान बढ़ जाएगा, और वोल्टेज को बढ़ाने से धारा का मान घाट जाएगा।

ट्रांसफार्मर के उपयोग :

विद्युत् के क्षेत्र में ट्रांसफार्मर एक बहुत ही महत्वपूर्ण डिवाइस है।  इसका उपयोग करके ही इलेक्ट्रिक पावर को सुदूर स्थानों पर पहुंचा पाना संभव है। चुकी बिना ट्रांसफार्मर के डिस्ट्रीब्यूशन से बहुत अधिक पावर लोस  होता है। 

पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन के क्षेत्र में सबसे ज्यादा स्टेप अप ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है। 

घरेलु उपकरणों को कम वोल्टेज की आवश्यकता होती है, ऐसे में यह सबसे ज्यादा स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है।

निष्कर्ष :-

दोस्तों, मैंने अपनी तरफ से ट्रांसफार्मर क्या होता है ? इसके कार्य सिद्धांत के बारे में आसान भाषा में बताने की पूरी कोशिस की है।  अगर फिर भी आपको कोई बात आपको समझ नहीं आयी हो, या कोई सवाल हो तो आप हमसे पूछ सकते है।
इस पोस्ट के बारे में आप अपनी राय निचे कमेंट सेक्शन में जरूर दे। हमारे ब्लॉग को विजिट करने के लिए आपका धन्यवाद।

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